बिना बच्चों वाली मुस्लिम विधवा को अपने मृत पति की संपत्ति का एक-चौथाई हिस्सा पाने का अधिकार

 पृष्ठभूमि:

ज़ोहराबाई नामक एक मुस्लिम विधवा से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय ज़ोहरबी और अन्य बनाम इमाम खान (डी) एलआरएस और अन्य के माध्यम से, अक्टूबर 2025 का है। यह मामला एक निःसंतान मुस्लिम विधवा के उत्तराधिकार के अधिकारों से संबंधित था, न कि भरण-पोषण से, और उसके मृत पति की संपत्ति के एक विशिष्ट हिस्से पर उसके अधिकार की पुष्टि करता था।

यह मामला उत्तराधिकार विवाद का था: याचिकाकर्ता ज़ोहरबी ने अपने पति की निःसंतान मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति का तीन-चौथाई हिस्सा अपने नाम करने का दावा किया था। उनके पति के भाई इमाम खान ने इस दावे को चुनौती दी थी।

इस फैसले ने इस्लामी उत्तराधिकार कानून को स्पष्ट किया: सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, एक निःसंतान विधवा अपने दिवंगत पति की संपत्ति का एक-चौथाई हिस्सा पाने की हकदार है। अगर उसके बच्चे होते, तो उसका हिस्सा आठवाँ हिस्सा होता।

संपत्ति के स्वामित्व को स्पष्ट किया गया: अदालत को यह भी निर्धारित करना था कि क्या संपत्ति पति के जीवनकाल में बेची गई थी। अदालत ने फैसला सुनाया कि चूँकि बिक्री के दस्तावेज़ पति की मृत्यु के बाद निष्पादित किए गए थे, इसलिए संपत्ति अभी भी उसकी संपत्ति का हिस्सा है और उत्तराधिकार कानून के अधीन है।

भारत का सर्वोच्च न्यायालय

ज़ोहरबी और अन्य बनाम इमाम खान

(डी) टीएचआर. एलआरएस. एवं अन्य.

2025 आईएनएससी 1245

ऋतु हंस एडवोकेट

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