मुस्लिम महिलाओं का खुला (Khula) लेने का पूर्ण अधिकार: सुप्रीम कोर्ट और तेलंगाना हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 2025

2025 में मुस्लिम महिलाओं के लिए न्यायपालिका ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है, जिसमें यह स्पष्ट कर दिया गया कि महिला का “खुला” का अधिकार पूर्णतः उसका व्यक्तिगत और धार्मिक अधिकार है — इसके लिए पति की अनुमति आवश्यक नहीं है।


क्या है ‘खुला’ (Khula)?

‘खुला’ इस्लामिक विवाह-विच्छेद (divorce) का वह माध्यम है जिसमें एक मुस्लिम महिला स्वयं विवाह समाप्त कर सकती है, यदि उसे वैवाहिक जीवन असहनीय या असमान लगे। यह अधिकार कुरआन में प्रदत्त है और यह “तलाक” से भिन्न है, क्योंकि “तलाक” का अधिकार पुरुष के पास होता है।


तेलंगाना हाई कोर्ट का फैसला (जून 2025)

तेलंगाना हाई कोर्ट ने Mohammed Arif Ali बनाम Smt. Afsarunnisa (2025 SCC OnLine TS 368) मामले में कहा कि:

  • मुस्लिम महिला का “खुला” लेने का अधिकार पूर्ण (absolute) है।

  • इस प्रक्रिया में पति की सहमति आवश्यक नहीं है।

  • जब महिला “खुला” की मांग रखती है और मेल-मिलाप (reconciliation) की कोशिश असफल होती है, तब अदालत का काम मात्र इस निर्णय पर न्यायिक मुहर लगाना है

  • किसी धार्मिक संस्था या मुफ्ती को “खुला” की वैधता तय करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

यह फैसला न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य ने लिखा था और इसे महिला अधिकारों के क्षेत्र में एक मील का पत्थर माना जा रहा है.indiatoday+1


पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट का फैसला (अक्टूबर 2025)

इसी क्रम में, पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने भी 24 अक्टूबर 2025 को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जिसमें कहा गया कि:

  • इस्लाम महिलाओं को विवाह समाप्त करने (खुला का अधिकार) की अनुमति देता है यदि वैवाहिक जीवन अस्थिर या असहनीय हो जाए।

  • न्यायमूर्ति आयशा ए. मलिक की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि खुला के लिए पति की अनुमति या न्यायालय की विवेकाधीन स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है

  • अदालत ने स्पष्ट किया कि “मानसिक या मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न (psychological abuse)” भी तलाक के वैध आधारों में शामिल है।

  • महिला अपने मेहर (dower) को रखते हुए भी “खुला” ले सकती है, यदि विवाह में समानता और सम्मान न रहे।

यह फैसला महिलाओं के सम्मान, समानता और मानसिक स्वास्थ्य को इस्लामी कानून के साथ जोड़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक व्याख्या माना गया.timesofindia.indiatimes+1


कानूनी और सामाजिक प्रभाव

इन दोनों फैसलों के बाद मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की दिशा में बड़े परिवर्तन संभावित हैं:

  • यह निर्णय मुस्लिम पर्सनल लॉ की आधुनिक व्याख्या प्रस्तुत करता है।

  • अदालतों ने यह स्थापित किया कि धार्मिक संस्थाएँ विवाह-विच्छेद का अंतिम अधिकार नहीं रखतीं, बल्कि यह केवल न्यायपालिका के अधिकार-क्षेत्र में आता है।

  • “खुला” का अधिकार अब महिलाओं की स्वतंत्रता, स्वाभिमान और समानता के प्रतीक के रूप में देखा जा रहा है।


निष्कर्ष

तेलंगाना हाई कोर्ट और पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट के ये निर्णय केवल कानूनी बदलाव नहीं हैं, बल्कि यह औरतों के अधिकार, आत्मसम्मान और शरीयत की सही आत्मा को पहचानने की दिशा में क्रांतिकारी कदम हैं।
अब मुस्लिम महिलाएँ बिना किसी डर या सामाजिक दबाव के “खुला” का सहारा लेकर अपनी ज़िंदगी का फैसला स्वयं कर सकती हैं।



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