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विवाह के समय मिला स्त्री धन महिला की व्यक्तिगत संपत्ति

 केस - Pratibha Rani vs Suraj Kumar & Another, (1985) 2 SCC 370 कोर्ट - सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह के समय महिला को दिए गए गहने, नकदी या उपहार उसके स्त्रीधन (Stridhan) कहलाते हैं, और यह उसकी व्यक्तिगत संपत्ति होती है। पति या ससुराल पक्ष का उस पर कोई अधिकार नहीं होता। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि पति या उसके परिवार वाले स्त्रीधन वापस करने से मना करते हैं या उसका दुरुपयोग करते हैं, तो यह आपराधिक विश्वासघात (Criminal Breach of Trust) माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि महिला अपने स्त्रीधन की वापसी के लिए स्वतंत्र रूप से आपराधिक या सिविल कार्रवाई कर सकती है। यह फैसला महिलाओं के आर्थिक अधिकारों की कानूनी सुरक्षा को मजबूत करता है। ऋतु हंस एडवोकेट 

बिना बच्चों वाली मुस्लिम विधवा को अपने मृत पति की संपत्ति का एक-चौथाई हिस्सा पाने का अधिकार

 पृष्ठभूमि: ज़ोहराबाई नामक एक मुस्लिम विधवा से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय ज़ोहरबी और अन्य बनाम इमाम खान (डी) एलआरएस और अन्य के माध्यम से, अक्टूबर 2025 का है। यह मामला एक निःसंतान मुस्लिम विधवा के उत्तराधिकार के अधिकारों से संबंधित था, न कि भरण-पोषण से, और उसके मृत पति की संपत्ति के एक विशिष्ट हिस्से पर उसके अधिकार की पुष्टि करता था। यह मामला उत्तराधिकार विवाद का था: याचिकाकर्ता ज़ोहरबी ने अपने पति की निःसंतान मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति का तीन-चौथाई हिस्सा अपने नाम करने का दावा किया था। उनके पति के भाई इमाम खान ने इस दावे को चुनौती दी थी। इस फैसले ने इस्लामी उत्तराधिकार कानून को स्पष्ट किया: सुप्रीम कोर्ट ने पुष्टि की कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, एक निःसंतान विधवा अपने दिवंगत पति की संपत्ति का एक-चौथाई हिस्सा पाने की हकदार है। अगर उसके बच्चे होते, तो उसका हिस्सा आठवाँ हिस्सा होता। संपत्ति के स्वामित्व को स्पष्ट किया गया: अदालत को यह भी निर्धारित करना था कि क्या संपत्ति पति के जीवनकाल में बेची गई थी। अदालत ने फैसला सुनाया कि चूँकि बिक्री के दस्तावेज़ पति की मृत्यु क...

विभोर गर्ग बनाम नेहा (2025): पति-पत्नी की गुप्त रिकॉर्डिंग अब तलाक केस में कोर्ट में मान्य सबूत

केस का परिचय विभोर गर्ग और नेहा केस में सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल साक्ष्यों की वैधानिकता पर ऐतिहासिक निर्णय दिया। पति द्वारा की गई गुप्त कॉल रिकॉर्डिंग को तलाक केस में अदालत ने प्रमाणिक सबूत माना। दोनों पक्षों के बीच लंबे समय तक विवाद चला, कोर्ट ने पारिवारिक न्याय के लिए पारदर्शिता को प्राथमिकता दी.​ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यदि रिकॉर्डिंग सच्चाई को सामने लाती है, तो उसे सबूत के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इससे झूठे आरोपों की जांच में पारदर्शिता और निष्पक्षता आती है, साथ ही सभी पक्षों के निजता अधिकार की रक्षा के लिए भी दिशा-निर्देश दिए गए हैं.​ कानूनी महत्व अब पति-पत्नी के बीच कॉल रिकॉर्डिंग तलाक, मेंटेनेंस, या क्रूरता के केस में मुख्य सबूत बन सकती है। यह निर्णय भारतीय परिवार अदालतों में डिजिटल साक्ष्य की मान्यता के संबंध में नई दिशा प्रदर्शित करता है। फैसले से न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ी है, लेकिन निजता अधिकारों की रक्षा को भी लगातार महत्व दिया गया है.​ निष्कर्ष सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला परिवार कानूनों, न्यायिक प्रक्रिया और निजता व आ...

मुस्लिम महिलाओं का खुला (Khula) लेने का पूर्ण अधिकार: सुप्रीम कोर्ट और तेलंगाना हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला 2025

2025 में मुस्लिम महिलाओं के लिए न्यायपालिका ने एक ऐतिहासिक कदम उठाया है , जिसमें यह स्पष्ट कर दिया गया कि महिला का “खुला” का अधिकार पूर्णतः उसका व्यक्तिगत और धार्मिक अधिकार है — इसके लिए पति की अनुमति आवश्यक नहीं है। क्या है ‘खुला’ (Khula)? ‘खुला’ इस्लामिक विवाह-विच्छेद (divorce) का वह माध्यम है जिसमें एक मुस्लिम महिला स्वयं विवाह समाप्त कर सकती है , यदि उसे वैवाहिक जीवन असहनीय या असमान लगे। यह अधिकार कुरआन में प्रदत्त है और यह “तलाक” से भिन्न है, क्योंकि “तलाक” का अधिकार पुरुष के पास होता है। तेलंगाना हाई कोर्ट का फैसला (जून 2025) तेलंगाना हाई कोर्ट ने Mohammed Arif Ali बनाम Smt. Afsarunnisa (2025 SCC OnLine TS 368) मामले में कहा कि: मुस्लिम महिला का “खुला” लेने का अधिकार पूर्ण (absolute) है। इस प्रक्रिया में पति की सहमति आवश्यक नहीं है। जब महिला “खुला” की मांग रखती है और मेल-मिलाप (reconciliation) की कोशिश असफल होती है, तब अदालत का काम मात्र इस निर्णय पर न्यायिक मुहर लगाना है । किसी धार्मिक संस्था या मुफ्ती को “खुला” की वैधता तय करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है...